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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१४७

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६२ कविता कौमुदी तुलसीदास न्दी भाषा के अभूतपूर्व महाकवि गोस्वामी हि संवत् १५८६ वि० में, तुलसीदास का जन्म राजापुर में हुआ । इनके पिता का नाम आत्मा-

    • राम दुबे और माता का नाम हुलसी था । इन

का पहला नाम रामबोला था | ये सरयूपारीण ब्राह्मण थे । इनका जन्म दरिद्र कुटुम्ब में हुआ था; जैसा कि इन्होंने कवितावली में " जायो कुल मंगन " आदि स्पष्ट ही लिखा है । इनके गुरु का नाम नरहरिदासजी था । रामायण के प्रारंभ में " बंदउँ गुरु पद कञ्ज, कृपासिन्धु नर रूप हरि " इस सोरटे के "नर रूप हरि " पद से, लोग गुरु का नाम नरहरि निकालते हैं । इनका विवाह दीनबन्धु पाठक की कन्या रत्नावली से हुआ था। स्त्री पर इनका प्रेम अधिक था । एक दिन वह नेहर चली गई । इनसे पत्नी वियोग न सहा गया । ये ससुराल जाकर स्त्री से मिले । स्त्री को लज्जा आई । उसने ये दोहे कहे:- लाज न लागत आपु को धिक धिक ऐसे प्रेम को दौरे कहा आयहु कहा मैं साथ । नाथ ॥ अस्थि चरम मय देह मम तामें जैसी प्रीति । तैसी जो श्री राम महँ होति न तौ भव भीति ॥ यह बात गोसाई जी को ऐसी लगी कि ये वहाँ से उसी समय काशी चले आये और विरक्त हो गये । स्त्री बेचारी को क्या मालूम था कि उसकी साधारण बात का ऐसा परि- णाम होगा । उसने बहुत विनती की, और भोजन करने को कहा, परन्तु इन्होंने एक न सुनी। यह घटना तुलसीदास के प्रेम की प्रौढ़ता प्रकट करती है। इनके हृदय में प्रेम का समुद्र