पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१५

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प्रस्तावना

कविता सृष्टि का सौन्दर्य है, कविता ही सृष्टि का सुख है, और कविता ही सृष्टि का जीवन प्राण है। परमाणु में कविता है, विराट् रूप में कविता है, बिन्दु में कविता है, सागर में कविता है, रेणु में कविता है, पर्वत में कविता है, वायु और अग्नि में कविता है, जल और थल में कविता है, आकाश में कविता है, प्रकाश में कविता है, अन्धकार में भी कविता है; सूर्य और चन्द्र और तारागण में कविता है, किरण और कौमुदी में कविता है, मनुष्य में कविता है, पशु कविता है, पक्षी में कविता है, वृक्ष में कविता है, जिधर देखो उधर कविता का साम्राज्य है। प्रकृति काव्यमय है, सारा ब्रह्माण्ड एक अद्भुत महाकाव्य है। जिस मनुष्य ने इस सारगर्भित रसमयी कविता के आनन्द का स्वाद चखा, वही भाग्यवान् है। जिसने इस सरस्वती मन्दिर में कुछ शिक्षा ग्रहण की और मनन किया वही पण्डित है, जिसने इस रस प्रवाह में अपने को बहा दिया वही विरक्त है, जिसने इस अमृत प्रवाह में डूब कर दो चार कलश भर कर प्यासे थके हुये रोगी वा मृतप्राय यात्रियों को कुछ बूँदें पिलाकर, उन्हें शक्ति दी और पुनर्जीवित किया, वही कवि हैं।

ईश्वरीय सौन्दर्य को–प्राकृतिक कविता को भाषा की छटा द्वारा संसार को दरसाना ही कवि का कर्त्तव्य है। जितना गहरा वह अपनी प्रतिभा द्वारा इस सौन्दर्य सागर में डूबता है, उतना ही अधिक वह अपने कर्त्तव्य में सफल होता है।