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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१७६

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मीराबाई
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चरन चोट चटकन चकोट अरि उर सिर बज्जत।
विकट कटक विद्दरत बीर वारिद जिमि गज्जत॥
लंगूर लपेटत पटकि महि जयति राम जय उच्चरत।
तुलसीस पवननन्दन अटल जुद्ध क्रुद्ध कौतुक करत॥

खेती न किसान को भिखारी को न भीख बलि बनिक को बनिज न चाकर को चाकरी। जीविका बिहीन लोग सिद्यमान सोचबस कहै एक एकन सों कहाँ जाय का करी। वेदहुँ पुरान कही लोकहूँ बिलोकियत साँकरे समय के राम रावरे कृपा करी। दारिद दसानन दबाई दुनी दीनबन्धु दुरित दहत देखि तुलसी हहा करी॥


मीराबाई

मीराबाई जोधपुर मेड़ता के राठौर रतनसिंह जी की एकलौती बेटी थीं। इनका जन्म कुड़की नामक गाँव में, संवत् १५५५ वि॰ और सं॰ १५६० वि॰ के बीच में हुआ था। इनका विवाह उदयपुर के सीसोदिया राजकुल में महाराना साँगाजी के कुँअर भोजराज के साथ सं॰ १५७३ में हुआ था। इनका देहान्त कब हुआ—इसका ठीक ठीक पता नहीं चलता। स्वर्गवासी भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का अनुमान है कि मीराबाई ने संवत् १६२० और १६३० वि॰ के बीच शरीर छोड़ा। विवाह होने पर मीराबाई चित्तौड़ गईं। वहाँ विवाह होंने से इस बरस के भीतर ही ये विधवा हो गईं। परन्तु इनको इस बात का कुछ भी शोक न हुआ। क्योंकि इनके