का जन्मस्थान नारनौल बताते है उन्हें भूषण का यह दोहा देखना चाहिये—
द्विज कनौज कुल कस्यपी रतनाकर सुत धीर।
बसत त्रिविक्रमपुर सदा तरनि तनूजा तीर॥
बीर बीरबल से जहाँ उपजे कवि अरु भूप।
देव बिहारीश्वर जहाँ विश्वेश्वर तद्रप॥
महाराज बीरबल अकबर के मन्त्री थे। अकबर इनको बहुत मानते थे। इन्होंने कई बार सेनापति का भी काम किया था और कई लड़ाइयाँ जीती थीं। यहाँ तक कि सं॰ १६४० में, उत्तर पश्चिम सीमांत प्रदेश के युद्ध ही में इनका प्राणान्त भी हुआ। जब इनके मरने का समाचार बादशाह अकबर को मिला, तब अकबर ने अत्यन्त दुःखी होकर यह सोरठा पढ़ा—
दीन देखि सब दीन एक न दोन्हों दुसह दुःख।
सो अब हम कहँ दीन कछुक न राख्यो बीरबर॥
अकबर के दरबार में कट्टर मुसलमान वज़ीरों के बीच में रह कर भी इन्होंने हिन्दुओं का बड़ा हित-साधन किया था। इनके ही प्रभाव से हिन्दुओं की बहुत सी कठिनाइयाँ दूर हुई थीं और हिन्दुओं को ऊँचे ऊँचे पद मिले थे। अकबर बीरबल पर बड़ा विश्वास रखते थे। ये अपनी युक्तिपूर्ण बातों से बादशाह का मनोरञ्जन भी खूब करते थे। एक सा धारण दशा से अपने बुद्धिबल के द्वारा उन्नति करके ये अकबर के नवरक्षों में हो गये और शाही दरबार से इन्होंने एक बड़ी जागीर और महाराजा की पदवी पाई। कविता में इनका उपनाम ब्रह्म था।