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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१८६

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बीरबल
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गुन बिनु धन जैसे, गुरु बिन ज्ञान जैसे, मान बिन दान
जैसे, जल बिन सर है। कण्ठ बिन गीत जैसे, हित बिन प्रीति
जैसे, वेश्या रस रीति जैसे, फल बिन तर है॥ तार बिन जन्त्र
जैसे, स्याने बिन मंत्र जैसे, पुरुष बिन नारि जैसे, पुत्र बिन घर
है। टोडर सुकवि तैसे मन में विचारि देखो धर्म बिन धन
जैसे पच्छी बिना पर है॥२॥

जार को विचार कहा, गनिका को लाज कहा, गदहा को
पान कहा, आँधरे को आरसी। निगुनी को गुन कहा, दान
कहा दारिदी को, सेवा कहा सूम को अरण्डन की डारसी॥
मदपी को सुचि कहा, साँच कहा लम्पट को, नीच को बचन
कहा, स्यार की पुकार सी। टोडर सुकवि ऐसे हठी ते न
टारे टरै, भावे कहो सूधी बात भावे कहो फारसी॥३॥


 


बीरबल

हाराज बीरबल का जन्म सं॰ १५८५ वि॰ में, तिकवाँपुर ज़ि॰ कानपूर में एक साधारण ब्राह्मण के घर में हुआ। इनके पिता का नाम गंगादास था। प्रयाग के किले में जो अशोक स्तंभ है उस पर यह खुदा हुआ है—

"संवत् १६३२ शाके १४९३ मार्ग बदी ५ सोमवार गङ्गादास सुत महाराज बीरबल श्री तीरथराज प्रयोग की यात्रा सुकल लिखितं।"

शिवराज भूषण में भूषण कवि ने इनका जन्मस्थान त्रिविक्रमपुर लिखा है, जो यमुना के तट पर बसा हैं और वही भूषण का भी जन्मस्थान है। अतयव जो लोग बीरबल