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आनन्द बढ़ाते हैं—किन्तु हीरों और लालों की बात कुछ और ही है।
इस "कविता-कौमुदी" की छटा, संग्रह होने के कारण बादलों से छनकर आती है तौ भी अंधकार दूर करने के लिए पर्याप्त है। इसमें अमूल्य मणियों की लड़ियाँ हैं, साथ साथ रँगीले काँच के टुकड़ों की बन्दनवारें भी हैं, बहुत से काँच के टुकड़े बहुमूल्य हैं इनका भी शृंगार शोभायमान है; और अपने अपने स्थान पर सभी आदरणीय है।
प्रयाग, मार्गशीर्ष शुक्ल ३, संवत् १९७४ |
पुरुषोत्तमदास टण्डन |