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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२०२

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नरोत्तमदास
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नरोत्तमदास

रोत्तमदास कस्बा बाड़ी जिला सीतापुर के रहने वाले ब्राह्मण थे। शिवसिंह सरोज में सं॰ १६०२ में इनका होना लिखा है। ये अच्छे कवि थे। इनके लिखे "सुदामा चरित" के कुछ उत्तम पद्य हम यहाँ उद्धृत करते हैं—

लोचन कमल दुखमोचन तिलक भाल श्रवणन कुंडल
मुकुट धरे माथ हैं। ओढ़े पीत बसन गले में बैजयंती माल
शंख चक्र गदा और पद्म लिये हाथ हैं। कहत नरोत्तम संदीपन
गुरू के पास तुमही कहत हम पढ़े एक साथ हैं। द्वारका के गये
हरि दारिद हरेंगे पिय द्वारका के नाथ वे अनाथन के नाथ हैं॥१॥

शिक्षक हैं सिगरे जगको तिय ताको कहा अब देति है सिच्छा।
जे तप कै परलोक सिधारत संपति की तिनके नहिं इच्छा।
मेरे हिये हरिको पद पंकज बार हजारलौं देख परिच्छा।
औरन के धन चाहिये बावरी ब्राह्मण के धन केवल भिच्छा॥२॥

दानी बड़े तिहुँ लोकन में जग जीवत नाम सदा जिनको लै।
दीनन की सुधि लेत भली विधि सिद्ध करो पिय मेरो मतोलै।
दीन दयालु के द्वार न जातसो और के द्वार पै दीन ह्वै बोलै।
श्री यदुनाथ से जाके हितूसो तिहूँ पन क्यों कन माँगत डोलैं॥३॥

क्षत्रिन के प्रण युद्ध ज्याँ बादल साजि चढ़े गज बाजनहीं।
वैश्य को बानिज और कृषीपन शूद्र के सेवन नीति यही।
विप्रन के प्रण है जु यही सुख संपति सौं कुछ काज नहीं।
कै पढ़िवो कै तपोधन है कन माँगत ब्राह्मणै लाज नहीं॥४॥