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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२१०

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रहीम
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कोप की किरनि कै जलज नल नील तंत
उपमा अनंत चारु चँवर शृंगार हैं।
कारे सटकारे भीजे सोंधे सों सुगंध बास
ऐसे बलभद्र नवबाला मेरे बार हैं॥२॥


 

रहीम

हीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम खानखाना था। इनके बाप का नाम बैरमखाँ था। इनका जन्म सं॰ १६१० में हुआ था। अकबर बाद‌शाह इनको बहुत मानते थे। ये अकबर के प्रधान सेनापति और मंत्री थे।

ये अरबी, फ़ारसी, संस्कृत और हिन्दी के पूर्ण विद्वान् थे। इनकी सभा सदा पण्डितोँ से भरी रहती थी। ये कृष्ण भगवान के उपासक थे। ये बड़े दानी, परोपकारी और सज्जन थे। कहते हैं कि अपने जीवन भर में इन्होंने कभी किसी पर क्रोध नहीं किया। गङ्ग कवि को एक ही छन्द पर इन्होंने ३६ लाख रुपये दिये थे। अकबर के मरने पर जहाँगीर ने किसी कारण वश इन्हें कैद कर दिया। कैद से छूटने पर इनकी आर्थिक दशा ख़राब हो गई। इस हालत में भी याचक लोग इन्हें घेरे रहते थे। दान शक्ति की क्षीणता से इनको बड़ा मानसिक कष्ट होता था। उस दशा में इन्होंने कहा—

ये रहीम दर दर फिरैं माँगिं मधुकरी खाँहिं।
यारो यारी छोड़ दो वे रहीम अब नाहिं॥

इतने पर भी एक याचक ने इनको बहुत विवश किया, तब इन्होँने रीवाँ नरेश से एक लाख रुपये मङ्गवा कर उसे