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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२२४

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रहीम
१६९
 

सघन कुंज अमरैया सीतल छाँह।
झगरति आइ कोइलिया पुनि उड़ि जाह॥२२॥
खेलत जानिसि टोलवा नन्द किसोर।
छुइ वृषभानु कुँअरिया होइ गइ चोर॥२३॥
पीतम मिले सपनवाँ भो सुख खानि।
आनि जगायेसि चेरिया भइ दुःख दानि॥२४॥
पिय मूरति चितसरिया चितवति बाल।
चितवत अवध सबेरवा जपि जपि माल॥२५॥
बिरहिन और बिदेसिया भौ एक ठौर।
पिय मुख तकत तिरियवा चन्द चक्कर॥२६॥
सखियन कीन सिँगरवा रचि बहु भाँति।
हेरति नैन अरसिया मुरि मुसुकाति॥२७॥
छाकहु बइठ दुअरिया मीजहु पाय।
पिय तन पेखि गरमियाँ विजन डोलाय॥२८॥
टूटि खाट घर टपकत टटिऔ टूटा।
पिय कै बाँह सिर्हनवाँ सुख कै लूटि॥२९॥
ढीलि ओखिं जल अँचवनि तरुनि सुगानि।
धरि खसकाइ घइलना मुरि मुसुकानि॥३०॥
बालम अस मन मिलयउँ जस पय पानि।
हंसिनि भई सवतिया लइ बिलगानि॥३१॥
पथिक आइ पनिघटवाँ कहत "पियाव"।
पैयाँ परउँ ननदिया फेरि कहाव॥३२॥

शृंगार सोरठ

पलटि चली मुसुकाय दुति रहीम उजियाय अति।
बासी सो उसकाय मानो दीनी दीप की॥१॥