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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२२५

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कविता-कौमुदी
 

दीपक हिये छपाय नवल बधू घर लै चली।
कर बिहीन पछिताय कुच लखिनिज सीसै धुनै॥२॥
गई आगि उर लाय आगि लेन आई जो तिय।
लागी नहीं बुझाय भभकि २ बरि बरि उठै॥३॥

मदनाष्टक

कलित ललित माला वा जवाहिर जड़ा था।
चपल चखल वाला चाँदनी में खड़ा था।
करि तट बिच मेला पीत सेला नबेला।
अलि बन अलबेला यार मेरा अकेला॥


 

केशवदास

केशवदास सनाढ्य ब्राह्मण थे, इनके पिता का नाम काशीनाथ था। इनका जन्म सं॰ १६१२ के लगभग हुआ। ओड़छा नरेश महाराजा रामसिंह के भाई इन्द्रजीतसिंह इनका के विशेष आदर करते थे। महाराजा बीरबल ने इनको केवल एक छंद पर छः लाख रुपये दिये थे। वह छंद यह हैं:—

केसबदास के भाल लिख्यो बिधि रंक कौ अंक बनाय संवारया।
धोये धुवै नहिँ छूटो छुटै बहु तीरथ जाय कै नीर पखारयो।
ह्वै गयो रंकते राव तबै जब बीरबली नृपनाथ निहारयो।
भूलि गयो जग की रचना चतुरानन बाय रह्यो मुख चारयो॥

केशवदास ने महाराज बीरबल के द्वारा इन्द्रजीतसिंह पर एक करोड़ का जुरमाना अकबर से माफ़ करा दिया था। इनका शरीरांत सं॰ १६७४ के लगभग हुआ।