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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२४६

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मुबारक
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पानिप के पुज सुघराई के सदनसुख
सोभा के समूह और सावधान मौज के।
लाजन के बोहित प्रमोहित प्रमोदन के
नेह के नकीब चक्रवर्ती चित चीज के॥
दया के दिवान पतिव्रता के प्रधान
पूरे नैन ये मुबारक विधान नवरोज के।
सफर के सिरताज मृगन के महाराज
साहब सरोज के मुसाहब मनोज के॥२॥
कनक बरन बाल नगन लसत माल
मोतिन के माल उर सोहैं भली भाँति है।
चन्दन चढ़ाइ चारु चंदमुखी मोहिनी सी
प्रात ही अन्हाइ पगु धारे मुसुकाति है।
चूनरी विचित्र स्याम सजि कै मुबारक जू
ढाँकि नख सिख तें निपट सकुचाति है।
चन्द्रमैं लपेटि कै समेटि के नखत मानो
दिन को प्रणाम किये राति चली जाति है॥३॥

अलक वर्णन

अलक मुबारक तिय बदन लटकि परी यों साफ़।
खुस नवीस मुनसी मदन लिख्यो काँच पर क़ाफ़॥१॥
अलक डोर मुख छवि नदी बेसरि बंसी लाई।
दै चारा मुकतानि को मो चित चली फँदाइ॥२॥
जगी मुबारक तिय बदन अलक ओप अति होइ।
मनो चंद के गोद में रही निसा सी सोइ॥३॥
लगि दूग अंजन दिग अलक देत मुबारक मोद।
जनु साँपिनि सुत आपनो भेंटत्ति भरि भरि गोद॥४॥