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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२७६

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भूषण
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आँखिन मूँदिबे के मिस आनि अचानक पीठि उरोज लगावै।
केहूँ कद्वँ मुसुकाइ चितै अँगराइ अनूपम अङ्ग दिखावै॥
नाह छुई छल सों छतियाँ हँसि भौंह चढ़ार अनन्द बढ़ावै।
जोबन के मद मत्ततिया हित सों पति को नित चित्त चुरावै॥४॥


 

भूषण

कानपुर नपुर जिले में यमुना नदी के बाएँ किनारे पर तिकाँपुर एक गाँव है। उस गाँव के पास ही "अकबरपुर बीरबल" नाम का एक अच्छा सा मौज़ा है। जहाँ अकबर शाह के सुप्रसिद्ध मंत्री बीरबल का जन्म हुआ था। उसी तिकवाँपुर गाँव में रत्नाकर त्रिपाठी नाम के एक कान्यकुब्ज कश्यपगोत्री ब्राह्मण रहते थे। उनके चार पुत्र हुये—चिन्तामणि, भूषण, मतिराम, और नीलकंठ (उपनाम जटाशङ्कर)। चारों भाई कवि थे। उनमें भूषण वीर रस के बड़े प्रतिभाशाली कवि हुये। इनके रचे हुये चार ग्रंथ सुने जाते हैं:—शिवराज भूषण, भूषण हजारा, भूषण उल्लास, दूषण उल्लास। परन्तु अब केवल शिवराज भूषण और कुछ स्फुट छंद ही मिलते हैं। हिन्दी-साहित्य सम्मेलन ने, भूषण की जितनी कवितायें मिल सकी हैं, सब को "भूषण-ग्रंथावली" के नाम से टीका सहित प्रकाशित किया है।

भूषण बड़े प्रतिभाशाली और वीर कवि थे। ये हिन्दुओं के जातीय कवि थे। हिन्दू जाति की उन्नति और ऐश्वर्य के ये