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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२७७

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कविता-कौमुदी
 

उत्कट अभिलाषी थे। इनके समान अपनी कविता में जातीयता का ध्यान रखने वाला हिन्दी के पुराने कवियों में कोई नहीं हुआ और इनके समान वीर कवि तो अब तक कोई न हुआ। यह दन्तकथा प्रसिद्ध है कि भूषण पहले बहुत निकम्में थे। इनके बड़े भाई चिन्तामणि कमाते थे और ये घर बैठे मौज उड़ाया करते थे। एक दिन भोजन करने के समय इन्हेंने अपनी भावज से नमक माँगा। भावज ने ताना मार कर कहा—क्या नमक कमाकर लाये हो, जो उठा करके दूँ? यह बात इनको ऐसी लगी कि ये उसी समय भोजन छोड़कर घर से निकल गये। चलते समय इन्होंने भावज से कहा—अच्छा, अब नमक कमाकर लावेंगे, तभी भोजन करेंगे। कहा जाता है कि, इसके पश्चात साहित्य का ज्ञान प्राप्त करने में इन्होंने बड़ा परिश्रम किया। और जब अच्छी कविता करने लगे तब ये चित्रकूटाधिपति हृदय राम सोलंकी के पुत्र रुद्रराम के पास गये। ये प्रतिभावान् थे ही, रुद्रराम ने इनकी कविता का चमत्कार देख इन्हें कवि भूषण की उपाधि दी। इस नाम से ये इतने प्रसिद्ध हुये कि अब इनके मुख्य नाम का पता ही नहीं चलता। वहाँ से ये औरंगज़ेब के दरबार में गये। जहाँ इनके बड़े भाई चिंतामणि रहते थे। चिंतामणि ने बादशाह से इनका परिचय कराया। औरङ्गजेब ने इनकी कविता सुनने की इच्छा प्रकट की। इस पर इन्होंने कहा—आप हाथ धोकर बैठिये तब मैं कविता सुनाऊँगा, क्योंकि शृंगार रस की कविता सुनकर आप का हाथ ठौर कुठौर पड़ा होगा; इससे वह अपवित्र हो गया है। मेरी कविता सुनकर आप का हाथ मोछों पर चला जायगा। हाथ न धोने से मोछ अपवित्र हो जायगी। औरंगज़ेब ने यह सुनकर क्रोध से कहा—यदि हाथ मोछ पर न गया