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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२८०

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भूषण
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ऐसे बाजिराज देत महाराज सिवराज भूषनं जे बाज की
समाजैं निदरतहैं। पौन पाय हीन, दूग घूँघट मैं लीन, मीन
जल मैं बिलीन क्यों बराबरी करत हैं॥ सब ते चलाक चित्त
तैऊँ कुलि भालम के रहैं उर अन्तर मैं धीर न धरत हैं। जिन
चढ़ि आगे को चलाइयतु तीर तीर एक भरि तऊ तीर पीछेही
परत हैं॥३॥

अफ़ज़लखान को जिन्होंने मयदान मारा बीजापुर गोल-
कुंडा मारा जिन आज है। भूषन भनत फरालीस त्यों
फिरंगी मार हबसी तुरुक डारे उलटि जहाज है॥ देखत मैं
रुसतमखाँ को जिन खाक किया सालकी सुरति आज सुनी
जो अवाज है। चौंकि चौंकि चकता कहत चहुँ घाते यारो लेत
रहौ खबरि कहाँ लौं लिवराज है॥४॥

पैज प्रतिपाल भूमिभार को हमाल चहुँ चक्क को अमाल
भयो दण्डक जहान को। साहिन को साल भयो ज्वाल
को जवाल भयो हर को कृपाल भयो हार के विधान को।
वीर रस ख्याल शिवराज भुवपाल तुव हाथ को बिसाल भयो
भूषन बखान को। तेरो करवाल भयो दच्छिन को ढाल
भयो हिन्दु को दिवाल भयौ काल तुरकान को॥५॥

दुरजन दार भजि भजि बेसम्हार चढ़ीं उत्तर पहार डरि
सिवाजी नरिन्द तें। भूषन भनत बिन भूषन वसन,साधे भूखन
पियासन हैं नाहन को निन्दते। बालक अयाने बाट बीच ही
बिलाने कुम्हलाने मुख कोमल अमल अरबिन्द ते। द्वैगजलं
कज्जल कलित बढ्यो कढ़यो मानो दूजा सात तरनि
तनूजा को कलिन्द तें॥६॥

छुट्यो है हुलास आम खास एक संग छुट्यो हरम
सरम एक संग बिनु ढंग ही। नैनम ते नीर धीर छूट्यो

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