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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२७९

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कविता-कौमुदी
 

जैसे स्वाभाविक बीर थे, वैसे भूषण भी सोने में सुगंध हो गये। कविता द्वारा जितना सम्मान भूषण को मिला, उतना हिन्दी के किसी कवि को नहीं मिला।

भूषण का जन्म अनुमान से सं॰ १६७० में और मरण १७७२ में हुआ। भूषण अब इस संसार में नहीं हैं। सैकड़ों वर्ष पहले ही के विधि विधान से विवश हो चले गये। परन्तु उनके हृदय का चित्र कविता रूप में अब भी हमारे सम्मुख है। भूषण अजर और अमर की भाँति हमारे साथ बल रहे हैं। वे एक पुष्प की तरह विकसित होकर अनंत काल के लिये सुगंध छोड़ गये। भगवान् फिर इस देश में शिवाजी ऐसे बीर और भूषण ऐसे सुकवि उत्पन्न करें।

हिन्दी में भूषण ही वीररस के सर्वोत्तम कवि हैं, इससे हमने इनकी कुछ अधिक कविताएँ उद्धत की हैं। भूषण की कुछ चुनी हुई कविताएँ नीचे दी जाती हैं:—

आए दरबार बिललाने छरीदार देखि जापता करनहार
नेकहूँ न मनके। भूषन भनत भौंसिला के आय आगे ठाढ़े
बाजे भए उमराय तुजुक करन के॥ साहि रह्यो जकि सिव
साहि रह्यो तकि और चाहि रह्यो चकि बने ब्योंत अनबन
के। ग्रीषम के भानु सो खुमान को प्रताप देखि तारे सम तारे
गए मूँदि तुरकन के॥१॥

इन्द्र जिमि जम्भ पर बाड़व सुअम्भ पर रावन सदम्भ
पर रघुकुल राज है। पौन बारिबाह पर सम्भु रतिनाह पर
ज्यों सहस्त्रबाह पर राम द्विजराज है॥ दावा द्रुम दंड पर
चीता मृगझुँड पर भूषन बितुँड पर जैसे मृगराज है। तेज
तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर त्यों मलिच्छ बंस पर
सेर सिवराज है॥२॥