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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२८३

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कविता-कौमुदी
 

कन्द सम केयलास, नाक गंग नाल, तेरे।जस पुडरीके को
अकास बैंचरीके सी॥१६॥

चित्त अनचैन आँसू उमगत नैन देखि बीबी कहैं बैन मियाँ
कहियत काहिने। भूषन भनत बूझे आये दरबार तें कँपत बार
और क्यों सम्हार तन नाहिनै॥ सीनो धकधकत पसीनो
आयो देह सब हीनो भयो रूप ने चितौत बाएँ दाहिनै।
सिवाजी की सँक मोनि गयेहौ सुखाय तुम्हैं जानियत
दक्खिन को सूबा करो साहिनै॥१७॥

मार करि पातसाही खाकसाही कीन्हीं जिन जेर कीन्हीं
जौर सों लै हद्द सब मारे की। खिसिं गई सेखी फिसि गई
सुरताई सब हिसि गई हिम्मति हजारों लोग सारे की॥
बाजत दमामें लाखों धौंसा आगे घहरात गरजत मेघ ज्यों
बरात चढ़े भारि की। दूलहो सिवाजी भयों दच्छिनी दमामें
बारे दिल्ली दुलहिनि भई सहर सितारे की॥१८॥

चकित चकत्ता चौंकि चौंकि उठै बार बार दिल्ली दहसति
चितै चाह करपति हैं। बिलखि बदन बिलखाते बिजैपुर पत्ति
फिरत फिरंगिन की नारी फरकति है॥ थर थर काँपत कुतुब-
शाह गोलकुंडा हहरि हबस-भूप भीर भरकति है। राजा
सिवराज के नगारन की धाक सुनि केते बादसाहन की छाती
दरकति है॥१९॥

मालवा उजैन भनि भूषन भेलास ऐन सहर सिरोज लौं
परावने परत हैं। गोंड़वानो तिलँगानो फिरँगानो करनाट
रुहिलानो रुहिलनं हिये हहरत है॥ साहि के सपुत सिंवराज
तैरौ धाक सुनि गढ़पति बीर तेजे धीर न धरत हैं। बीजापूर
गोलकुंडा आगरा दिल्ली के कोट बाजे बाजे रोज़ दरबाजे
उघरत हैं॥२०॥