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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२८५

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कविता-कौमुदी
 

को देवी को न देहरा न मन्दिर गोपाल को। गाढ़े गढ़ लीन्हें
अरु बैरी कतलान कीन्हे ठौर ठौर हासिल उगाहत है साल को।
बूड़ति है दिल्ली सो सम्हारै क्यों न दिल्लीपति धक्का आनि
लाग्यो सिवराज महाकाल को॥२५॥

कत्ता की कराकनि चकत्ता को कटक काटि कीन्ही सिव-
राज बीर अकह कहानियाँ। भूषन भनत तिहु लोक में तिहारी
धाक दिल्ली औ बिलाइत सकल बिललानियाँ। आगरे अगारन
ह्वै फाँदती कगारन छवै बाँधती न बारन मुखन कुम्हिलानियाँ।
कीबी कहैं कहा औ गरीबी गहे भागी जाहिं बीबी गहे
सूथनी सु नीबी गहे रानियाँ॥२६॥

छूटत कमान और तीर गोली बानन के मुसकिल होत
मुरचान हू की ओट में। ताही समै सिवराज हुकुम कै हल्ला
कियो दावा बाँधि पर हला वीर भट जोट मैं भूषन भनत
तेरी किम्मति कहाँ लौं कहौं हिम्मति यहाँ लगि हैं जाकी भट
झोट में। ताव दै दै मूछन कँगूरन पै पाँव दै दै अरि मुख घाव
दै दै कूदे परें कोट मैं॥२७॥

जीत्यो सिवराज सलहेरि को समर सुनि सुनि असुरन के
सु सीने धरकत हैं। देव लोक नाग लोक नर लोक गावें जस
अजहूँ लौं परे खग्ग दाँत खरकत हैं। कटक कटक काटि कीट
से उड़ाय केते भूषन भनत मुख मोरे सरकत हैं। रन भूमि लेटे
अध कटे कर लेटे परे रुधिर लपेटे पठनेटे फरकत हैं॥२८॥

सबन के ऊपर ही ठाढ़ो रहिबे के जोग साहि खरो कियो
जाय जारन के नियरे। जानि गैर मिसिल गुसीले गुला धारि
डर कीन्हों ना सलाम न वचन बोले सियरे। भूषन भनत
महावीर बलकन लाग्यो सारी पातसाही के उड़ाय गये