वेद राखे विदित पुरान राखे सार युत राम नाम राख्यो
अति रसना सुधर मैं। हिन्दुन की चोटी रोटी राखी है सिपा-
हिन की काँधे मैं जनेऊ राख्यो माला राखी गर मैं। मीड़ि राखे
मुगल मरोड़ि राखे पातसाह बैरी पीसि राखे बरदान राख्यो
कर मैं। राजन की हद्द राखी तेग बल सिवराज देव राखे
देवल स्वधर्म्म राख्यो घर मैं॥३४॥
मतिराम
मतिराम भूषण के सगे भाई थे। इनका जन्म सं॰ १६७४ के लगभग और मरण सं॰ १७७३ के लगभग हुआ। ये बूँदी के महाराज राव भाऊसिंह के यहाँ रहा करते थे। ये शृंगार रस के अच्छे कवि थे। इनके रचे ललित-ललाम, रसराज, छंद सार पिंगल और साहित्य-सार, आदि ग्रन्थ है।
- इनके कुछ छंद नीचे लिखे जाते हैं:—
जगत-विदित बूँदी नगर सुख सम्पति को धाम।
कलिजुगहू मैं सत्य जुग तहाँ करत विश्राम॥१॥
पढ़त सुनत मन है निगम आगम समृति पुरान।
गीत कवित्त कलान के जहँ सब लोग सुजान॥२॥
सरद बारिधर से लसत अमल धौरहर धौल।
चित्रति चित्रित सिखर जहँ इन्द्रधनुष से नौल॥३॥
महलनि ऊपर जहँ बने कञ्वन कलख अनूप।
निज प्रभानि सौं करत हैं गगन पीत अनुरूप॥४॥