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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३२३

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कविता-कौमुदी
 

सारस के नादन को बाद ना सुनात कहूँ नाहकही बकबाद
दादुर महा करैं। श्रीपति सुकवि जहाँ ओज ना सरोजन की
फूल ना फुलत जाहि चित दै चहा करै। बकन की बानी की
बिराजत है राजधानी काईसो कलित पानी फेरत हहा करै।
घोंघन के जाल जामें नरई सेवाल व्याल ऐसे पापी ताल
को मराल लै कहा करै॥२॥

ताल फीको अजल कमल बिन जल फीको कहत सकल
कवि हवि फीको रूम को। बिन गुन रूप फीको ऊसर को कूप
फीको परम अनूप भूप फीको बिन भूम को। श्रीपति सुकवि
महावेग बिन तुरी फीको जानत जहान सदा जीह फीको धूम
को। मेह फीको फागुन अबालक को गेह फीको नेह फीको
तियको सनेह फीको सूम को॥३॥

तेल नीको तिलको फुलेल अजमेर ही को साहब दलेल
नीको सैल नीको चंद को। विद्या को बिबाद नीको रामगुन
नाद नीको कामल मधुर सदा स्वाद नीको कंद को। गऊ
नवनीत नीको ग्रीषम को शीत नीको श्रीपति जू भीत नीको
बिना फरफंद को। जातरूप घट नीको रेशम को पट नीको
बंसीबट तट नीको नट नीको नन्दको॥४॥

चोरी नीकी चोर की सुकवि की लबारी नीकी गारी नीकी
लागती ससुरपुर धाम की। नाहीं नीकी मानकी सयान की
जबान नीकी तान नीकी तिरछी कमान मुलतान की। तातहू
की जीति नीकी निगम प्रतीति नीकी श्रीपति जू प्रीति नीकी
लागे हरिनाम की। रेवानीकी बानखेत मुँदरी सुवाकीनीकी
मेवा नीकी काबुल की सेवा नीकी राम की॥५॥

कीरति किशोरी गोरी तेरे मात की गुराई बीजसी सुहाई
तेरे विधुकर जाल सी। सहज सुवास सखी केसरसी केतकी