सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
श्रीपति
२६९
 

सी कौल सो सुखद अति अमल मराल सी। "श्रीपति" निदाघ
नवनीत मखमल सम सर्द ऋतु गरम परम मिही साल सी।
कनक प्रवाल सी नवीन दिनपाल सी कपूर की मसाल सी
सलोनी लाल माल सी॥६॥

रोहिनी रमन की मरीची सी सुखद सीची सोहनी सरस
महा मोहनी के थल सी। "श्रीपति" सुकवि छवि रवि बाल
कर सी है मैन के मुकुर सीअतलगंग जल सी। गोरी गरबीली
तेरे गातकी गुराई आगे चपला निकाई अति लागत सहल सी।
माखन महल सी पराग के चहल सी गुलाबके पहल सी नरम
मखमल सी॥७॥

हारिजात बारिजात मालती विदारि जात वारि जात
पारिजात सोधन में करी सी। माखनसी मैन सी मुरारी मख
मल सम कोमल सरस तन फूलन की छरी सी। गह गही गरुवी
गुराई गोरो गोरे गात श्रीपति बिलौर सांसी ईंगुर सौं
भरोसी। बिज्जु थिर धरी सी कनक रेख करी सी प्रबाल
छविहरी सी लसत लाल लरी सी॥८॥

कैसे रतिरानी के सिधोरे कवि "श्रापति" जू जैसे कल-
धौत के सरोरुह सँवारे हैं। कैसे कलधौत के सरोरुह सँवारे
कहि जैसे रूपनट के बटा से छवि ढारे हैं। कैसे रूप नटके बटा
से छवि ढारे कहु जैसे काम भूपति कै उलटे नगारे हैं। कैसे
काम भूपति के उलटे नगारे कहु जैसे प्राणप्यारी ऊँचे
उरज तिहारे हैं॥९॥