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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३३०

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रसलीन
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भले वंश को पुरुष सो निहुरै बहु धन पाय।
नवै धनुष सदवंस को जिहिंद्वैकोटिदिखाय॥६३॥
लोकन के अपवाद को डर करिये दिनरैन।
रघुपति सीता परिहरी सुनत रजक के बैन॥६४॥
कहाकहौंविधिकोअविधि भूले परे प्रवीन।
मूरख को संपति दई पंडित संपति हीन॥६५॥
वह संपति केहि काम की जिन काहू पै होउ।
नित्य कमावै कष्ट करि बिलसै औरहिं कोउ॥६६॥
तृनहुँ ते अरु तूलते हरुवो याचक आहिं।
जानतु है कछु माँगि हैं पचन उड़ावत नाहिं॥६७॥
सेइय नृप गुरु लिय अनिल मध्य भाग जग माहिं।
है विनाश अति निकटतें दूर रहे फल नाहिं॥६८॥


 

रसलीन

सैयद गुलाम नबी बिलग्रामी का उपनाम रसलीन था। बिलग्राम जिला हरदोई में एक मशहूर कस्बा है। वहाँ बहुत दिनों में बड़े बड़े विद्वान् मुसलमान होते आये हैं, और अब भी वर्त्तमान हैं। रसलीन वहीं के रहने वाले थे। इनका जन्म अनुमान से सं॰ १७४६ के लगभग हुआ। इनके रचे हुये दो ग्रन्थ मिलते हैं; अंगदर्पण और रस प्रबोध। अंगदर्पण में नखशिख का वर्णन है और रस प्रबोध में रसों का। मुसलमान होकर ब्रजभाषा में ऐसी सुन्दर रचना करने के लिये रसलीन धन्यवाद के पात्र हैं। शिवसिंह