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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३३५

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कविता-कौमुदी
 

के सिवाय ये बीर भी थे। इन्होंने दश वर्ष की ही अवस्था मैं एक उन्मत्त हाथी को विचलित कर दिया था, और तेरह वर्ष की अवस्था में बूंदी के राव जैतसिंह का समर में वध किया था। बीस वर्ष की अवस्था में अकेले ही एक सिंह को मारा था। कई घराऊ झगड़ों के कारण सं॰ १८१४ में ये राज पाट छोड़कर वृन्दावन चले गये और वहीं रहने लगे। १८२१ में वृन्दावन में इन्होंने शरीर छोड़ा।

वृंदावन इन्हें बहुत प्रिय था। वहाँ इनका सम्मान भी बहुत था। वहाँ के भक्तों में इनकी कविता का आदर इनके जीवन काल में ही बहुत हो गया था। उन्होंने ७५ ग्रंथों की रचना की, जिनमें से दो अब नहीं मिलते। ये बल्लभ सम्प्रदाय के थे। इनकी कविता बड़ी सरस भक्ति रस पूर्ण होती थी। हिन्दी काव्य के रसिकों को इनकी पुस्तकें अवश्य पढ़नी चाहिये। इनकी कविता का कुछ नमूना देखिये:—

उज्जल पंख की रैन चैन उज्जल रस दैनी।
उदित भयौ उड़राज अरुन दुति मनहर लैनी॥
महा कुपित ह्वै काम ब्रह्म अस्त्रहिं छोड्यो मनु।
प्राची दिसितें प्रजुलित आवति अगिनि उठी जनु॥
दहन मानपुर भए मिलन कों मन हुलसावत।
छावत छपा अमन्द चन्द ज्यों ज्यों नभ आवत॥
जगमगाति बन जोति सोत अमृत धारा से।
नवद्रुम किसलय दलनि चारु चमकत तारा से।
स्वेत रजत की रैन चैन चित मैन उमहनी।
तैसी मन्द सुगन्ध पौन दिन मनि दुःख दहनी॥
मधि नायक गिरिराज पदिक वृन्दावन भूषन।
फटिक सिला मनि शृङ्ग जगमगति दुति निर्दूषन ॥