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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३३४

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नागरीदास और बनीठनीजी
२७९
 

१५

बहु बजार बनिहार बनि बारो बेटा बैल।
व्योहर बढ़ई बन बवुर बात सुनो यह छैल॥

१६

जो यकार बारह बसैं सो पूरन गिरहस्त।
औरन को सुख दै सदा आप रहे अलमस्त॥

१७

सावन पछिवाँ भादों पुरवा आसिन बहै इसान।
कातिक कंता सींक न डोले गाजें सबै किसान॥

१८

गया पेड़ जब बकुला बैठा गया गेह जब मुड़िया पैठा॥
गया राज जहँ राजा लोभी। गया खेत जहँ जामी गोभी॥

१९

घर घोड़ा पैदल चलै तीर चलावै बीन।
थाती धरै दमाद घर जग में भकुआ तीन॥

२०

सदाँ न बागाँ बुलबुल बोरशलैं सदाँ न बाग बहाराँ।
सदाँ न ज्वानी रहती यारो सदाँ न सोहबत याराँ॥


 

नागरीदास और बनीठनीजी

नागरीदास कृष्णगढ़ (राजपूताना) के राजा थे। इनका असली नाम सावंत सिंह था। ये कविता में अपना उपनाम नागर अथवा नागरीदास रखते थे। ये राठौर क्षत्रिय थे इनका जन्म पौष कृष्ण १२ सं॰ १७५६ को हुआ। कवि होने