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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३४१

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कविता-कौमुदी
 

कहनावत मैं यह सुनी पोषत तनु को नेह।
मेह लगाये अब लगी सुखन सिगरी देह॥२१॥
बोलन चितवत चलन में सहज जनाई देत।
छिपत चतुरई कर कहूँ अरे हिये को हेत॥२२॥
यह बुझन को नैन ये लग लग कानन जात।
काहू के मुख तुम सुनी पिय आवन की बात॥२३॥
कञ्चन से तन में यहाँ भरो सुहाग बनाइ।
विरह आँच वापै कहो सहो कौन विधि आइ॥२४॥


 

तोष

तो का पूरा नाम तोषनिधि है। ये सिंगरौर, ज़िला इलाहाबाद के रहने वाले चतुर्भुज शुक्ल के पुत्र थे। सं॰ १७९१ में इन्होंने सुधानिधि नामक नायिका भेद का एक ग्रंथ रचा।

इनके जन्म मरण के ठीक ठीठ संवत् का पता नहीं चलता। इनके रचे हुये विनय शतक और नखशिख नामक दो ग्रन्थों का और भी नाम सुना जाता है। इनकी कविता कहीं कहीं बड़ी सरस हुई है। हम नीचे कुछ उदाहरण उद्धत करने है:—

एकै कहैं हँसि ऊधव जी ब्रज की जुवती तजि चन्द्र प्रभासी।
जाइ कियो कहि तोष प्रभू एक प्रान प्रिया लहि कंसकी दासी॥
जो हुते कान्ह प्रबीन महा सो हहा मथुरा मैं कहा मनि नासी।
जीव नहीं उबि जान जबै ढिग पौढ़ति हैं कुबजा कछुहासी॥१॥
श्री हरि की छवि देखिबे को अंखियाँ प्रति रोमन मैं करि देतो।
बैनन के सुनिबे कहँ औन जिते तित सो करतो करि हेनो॥