सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२९२
कविता-कौमुदी
 

नितान्त अशुद्ध है। हमने सहजोबाई की बानी और ज्ञाम स्वरोदय से इनके जीवन चरित्र का संग्रह किया है।

उस समय इनके ५२ शिष्य थे, जिनकी ५२ गद्दियाँ अलग अलग आजकल वर्त्तमान हैं, और उनके हज़ारों अनुयायी हैं। इनकी चेलियों में सहजोबाई और दया बाईबड़ी प्रेमिणी थीं। वे बराबर इनकी सेवा में लगी रहती थीं। इन दोनों चेलियों ने भी कविता की है, जो उनकी बानी के नाम से प्रसिद्ध है।

चरनदास के दो ग्रंथ मिलते हैं, एक ज्ञान स्वरोदय और दूसरा चरनदास की बानी। यहाँ इनके दोनों ग्रंथों में से कुछ पद्य चुनकर लिखे जाते हैं:—

दोहा

चार बेद का भेद है गीता का है जीव।
चरनदास लखु आपको तो मैं तेरा पीवै॥१।॥
सब योगन को योग है सब ज्ञानन को ज्ञान।
सबै सिद्धि को सिद्धि है तत्त्व सुरन को ध्यान॥२॥
इँगला पिंगला सुषुमणा नाड़ी तीन विचार।
दहिने बायें स्वर चले लखै धारना धार॥३॥
पिंगला दहिने अंग है इड़ा सु बायें होय।
सुषुमण इनके बीच है जब स्वर चालैं दोय॥
जब स्वर चालैं पिंगला मध्य सूर्य तहँ बास।
इड़ा सु बायें अंग है चन्द्र करत परकास॥५॥
चित्त अपनो स्थिर करै नासा आगे नैन।
स्वाँसा देखै दृष्टि सों जब पावै स्वर बैन॥६॥
भोरहिं जो सुषुमण चलै राज होय उत्पात।
देखन वालो विनसिहै और काल पर शांत॥७॥