चौपाई
विवाह दान तीरथ जो करैं बस्तर भूषण घर पग धरैं।
बायें स्वर में ये सब कीजै पोथीपुस्तक जो लिखलीजै॥८॥
योगाभ्यास अरु कीजै प्रीत औषध नाड़ीं कीजै मीत।
दीक्षा मंत्र बोवे नाज चन्द्र योग थिर बैठे राज॥९॥
चन्द्रयोग में स्थिर पुनि जानो थिर कारज सबहीपहिचानो।
करै हवेली छप्पर छावै बागबगीचा गुफा बनावै॥१०॥
हाकिम जाय कोट में बरै चन्द्र योग आसन पग घरै।
चरणदास शुकदेव बतावै चन्द्रयोगथिरकाज कहाबै॥११॥
जो खाँड़ौ कर लीयो चाहे जाकर बैरी ऊपर बाहै।
युद्ध बाद रण जीते सोई दहिनेस्वर में चालैकोई॥१२॥
भोजन करै करै अस्नान मैथुन कर्म भानु परधान।
वही लिखै कीजै व्योहारा गजघोड़ाबाहनहथियारा॥१३॥
विद्या पढ़ै नई जो साधै मंत्रसिद्धि औ ध्यान अराधै।
बैरी भवन गवन जो कीजै अरुकाहूको ऋणजोदीजै॥१४॥
ऋण काहू पै तू जो माँगे विष औ भूत उतारन लागे।
चरणदास शुकदेव बिचारी ये चर कर्म भानुकी नारी॥१५॥
दोहा
गाँव परगने खेत पुनि इधर उधर में मीत।
सुषुमण चलत न चालिये बरजत। हैं रणजीत॥१६॥
छिन बाँयेँ छिन दाहिने सोई सुषुमण जानि।
ढील लगै कै ना मिलै कै कारज की हानि॥१७॥
होय क्लेश पीड़ा कछू जो कोई कहिँ जाय।
सुषुमण चलत न चालिये दोन्हों तोहिँ बताय॥१८॥