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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३६४

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दूलह
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दूलह

दूलह कवीन्द्र के पुत्र और कालिदास त्रिवेदी के पौत्र थे। इनके जन्म मरण के ठीक ठीक समय का अभी तक पता नहीं चला। अनुमान से इनका जन्मकाल सं॰ १७७७ के लगभग ठहरता है। दूलह का "कविकुल कंठाभरण" नामक केवल एक ही ग्रन्थ मिलता है। उसमें कुल एक्यासी छंद हैं। इनके सिवाय कुछ स्फुट छंद भी मिलते हैं। दूलह का काव्य-गुण पैतृक है। कालिदास से कवीन्द्र की कविता अच्छी है और कवीन्द्र से दुलह की।

दूलह की कविता के कुछ नमूने नीचे दिये जाते हैं:—

फल विपरीत को जतन सों "विचित्र" हरि ऊँचे हेत
बामन में बलि के सदन मैं। आधार बड़े तैं बड़ो आधेय
"अधिक" जानो बरन समानो नाहिं चौदहो भुवन
मैं। आधेय अधिक तें आधार की अधिकताई दूसरी
अधिक आयो ऐसो गणनन मैं। तीनों लोग तन में अमान्यो
ना गगन मैं बसैं ते संत मन मैं कितेक कहौ मन मैं॥१॥

उत्तर उत्तर उतकरष बखानो "सार" दीरघ तें दीरघ
लघु तें लघु भारी को। सब तें मधुर ऊख ऊख तें पियूष ना
पियूष हूँ तें मधुर है अधर पियारी को। जहाँ कमिकन को
क्रमैं तें यथा क्रम "यथा संख्य" बैन, नैन, नेनकोन ऐसे धारी
को। कोकिल तें कल, कंजदल तें अदल भाव जीत्यो जिन
काम की कटारी नोकवारी को॥२॥

घरी जब बाहीं तब करी तुम नाहीं पाइ दियौ पलिकाहीं
नाहीँ नाहीँ के सुहाई हौ। बोलत मैं नाहीँ पट खोलत मैं नाहीँ