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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३६५

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कविता-कौमुदी
 

कवि दूलह उछाहीँ लाख भाँतिन लहाई हौ। चुंबन मैं नाहीँ
परिरम्भन मैं नाहीँ सब आसन बिलासन मैं नाहीँ ठीक ठाई
हौ। मेलि गलबाहीँ केलि कीन्हीँ चितचाही यह हाँ ते भली
नाहीँ सो कहाँ ते सीख आई हौ॥३॥

माने सनमाने तेई माने सनमाने सनमाने सनमाने सन-
मान पाइयतु है। कहैं कवि दूलह अजाने अपमाने अपमान
सोँ सदन तिनहीं को छाइयतु है। जानत हैं जेऊ तेऊ जात
हैं बिराने द्वार जान बूझ भूले तिनको सुनाइयतु है। काम
बस परे कोऊ गहत गरूर तो वा अपनी जरूर जाजरूर
जाइयतु है॥४॥


 

सीतल

सीतल तल स्वामी हरिदास की टट्टी सम्प्रदाय के महंत थे। इनका समय इस सम्प्रदाय के लोग सं॰ १७८० के लगभग बतलाते हैं, मरण काल का कुछ पता नहीं चलता। सीतल ने चार भागों में गुलज़ार चमन नामक ग्रंथ की रचना की थी। उसके तीन भाग मिलते हैं जिनके नाम गुलजार चमन, आनन्द चमन और बिहार चमन हैं। इनके विषय में यह किम्बदन्ती सुनी जाती है कि ये शाहाबाद ज़िला हरदोई के समीप किसी ग्राम के निवासी थे, और लालबिहारी नाम के एक लड़के पर आसक्त थे। इनकी कविता प्रेमरस से सराबोर है। कुछ छंदों का भाव सांसारिक प्रेम और भगवत्प्रेम, दोनों ओर लगाया जा सकता है। लालबिहारी का नाम इनके छंदों में प्रायः अधिक