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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३६९

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कविता-कौमुदी
 

तब जलपुट के नीचे देखे तहँ चन्दा प्रतिविम्बन पेखे
देखत हँसी सकल ब्रजनारी मगन बाल छवि लखि महतारी
तबहिँ श्याम कुछ हँसिमुसुकाने बहुरोँ माता सोँ बिरुझाने
लउँगौ री मा चन्दा लउँगौ वाहि आपने हाथ गहूँगौ
यह तौ कलमलात जल माँहीँ मेरे करमें आवत नाहीँ
बहर निकट देखियत माहीँ कहौ तो मैं गहि लावौं ताही
कहत जसोमति सुनहु कन्हाई तुव मुखलखि सकुचत उडुराई
तुम तिहि पकरन चहतगुपाला ताते ससि भजि गया पताला
अब तुमनें ससि डरपत भारी कहत अहो हरि सरन तुम्हारी
बिरुझाने सोये दै तारी लिय लगाय छतियाँ महतारी

लै पौढ़ाये सेज पर हरि को जसुमति माय।
अति बिरुझाने आज हरि यह कहि कहि पछताय॥
करसों ठोँकि सुनाय मधुरे सुर गावत कछुक।
उठि बैठे अतुराय चटपटाय हरि चौंकि के॥


 

ठाकुर

ठाकुर असनी के रहने वाले ब्रह्मभट्ट थे। इनका जन्म सं॰ १७९२ के लगभग कहा जाता है। इनकी कविता इतनी लोकप्रिय है कि कभी उस का उपयोग कहावतों की तरह किया जाता है। ठाकुर नाम के कई कवि हुये। परन्तु सब से प्रसिद्ध असनी वाले ही हैं। प्रेम का वर्णन इनकी कविता का मुख्य गुण है। नीचे हम कुछ कविताएँ उद्धत करते हैं। उनसे ठाकुर के हृदय का बड़ा सुन्दर परिचय मिलता है।

बैर प्रीति करिबे की मन में न राखै संक राजा राव देखि