सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२४
कविता-कौमुदी
 

पावैं क्यों प्रवैस बेस बेलिन को बाटी है॥ दारहू दरीन बीच
चारहू तरफ तैसी बरफ बिछाई तापै शीतल सुपाटी है।
गजक अँगूर की अँगूर से उचो हैं कुच आसव अँगूर को अँगूर
ही की टाटी है॥

१५

मल्लिकान मंजुल मलिन्द मतबारे मिले मंद मन्द मारुत
मुहीम मनसा की है। कहै पदमाकर त्यों नादत नदीन नित
तागर नवेलिन की नजर निशाकी है॥ दौरत दरेरे देत
दादुर सुदूँद दीह दामिनी दमंकनि दिसनि में दशा की है।
बद्दलनि बुन्दनि बिलोको बगुलानि बाग बङ्गलनि बेलिन बहार
बरसा की है।

१६

तालन पै ताल पै तमालन पै मालन पै बृन्दाबन बीथिन
बहार बंसीबट पै। कहै पदमाकर अखंड रास मंडल पै
मण्डित उमड़ि महा कालिन्दी के तट पै॥ छिति पर छान
पर छाजत छतान पर ललित लतान पर लाड़िली के लट पै।
माई भले छाई यह सरद जुन्हाई जिहि पाई छबि आजुही
कन्हाई के मुकुट पै॥

१७

अगर की धूप मृगमद को सुगन्ध वर बसन बिशाल जल
अङ्ग ढाकियतु हैं। कहै पदमाकर सु पौन को न गौन जहाँ
ऐसे भौन उमँगि उमंगि छाकियतु हैं। भोग औ सँयोग हित
सुरति हिमंत ही में एते और सुखद सहाय वाकियतु है।
तान की तरंग तरुणापन तरणि तेज तेल तूल तरुणि तमाल
ताकियतु हैं॥