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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३८०

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पदमाकर
३२५
 

१८

गुलगुली गिलमैं गलीया हैं गुणी जन हैं चाँदनी हैं धिक
हैं चिरागन की माला हैं। कहै पदमाकर त्यों गजक गिजा
हैं सजी सेज हैं सुराही हैं सुरा है और प्याला हैं। शिशिर के
पाला को न व्यापत कसाला तिन्हैं जिनके अधीन एते उदित
मसाला हैं। तान तुकताला हैं विनोद के रसाला हैं सुबाला
हैं दुशाला हैं विशाला चित्रशाला हैं॥

१९

जात हती निज गोकुल में हरि आबैँ तहाँ लखिकै मन सुना।
तासों कहौं पदमाकर यों अरे साँवरे बावरे तैं हमें छू ना॥
आजधों कैसी भई सजनी उत वा विधिबोल कढ्योई कहूंना।
आनिलगायोहियोसोंहियो भरिआयोगरो कहिआयो कछूना॥

२०

शोभित सुमनवारी सुमना सुमनवारी कौनहूँ सुमनवारी
को नहीँ निहारी हैं। कई पद‌माकर त्यौ बाँधनू बसनवारी
वा ब्रज बसन बारी ह्यो हरन हारी है॥ सुबरनधारी रूप
सुबरनवारी सजै सुखरनवारी काम कर की सँवारी है।
सीकरनवारी स्वेद सीकरनवारी रति सीकरनवारी सो
बसीकरनवारी है।

२१

अंचल के ऐंचे चल करती द्वगंचल को चंचला तैं चंचल
चलै न भजि द्वारे को। कहै पदमाकर परै सी चौंक चुम्बन में
छलनि छपावै कुच कुंभनि किनारे को॥ छाती के छुवे पै
परी राती सी रिसाय गलबाँहीँ किये करै नाहिं नाहिं पै
उचारे को। ही करति शीतल तमासे तुंग ती करति सी करति
रति में बसीकरति प्यारे को॥