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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३८७

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कविता-कौमुदी
 

चाल भराल मंजु धुनि करहीं साम वेद मुनिवर उच्चरहीँ
प्रफुलित उपवन जूही जातीँ मनु नभ उडू पाँती दरसातीँ
धन समीप सुर धनुन देखाहीं जिमिन सुजनढिग दुर्जनजाहीँ
सद्र नदी घटि चली बनाई जिमि खल विभव नसे नै जाईं
सूखी कीच महीतल माहीँ ज्यौं सतहिय कामादि सुखाहीँ
पूरण अन्न सहित छिति छाजै जिमि धनयुत दाता मति राजै
वन वाटिका उपवन मनोहर फूल फलसों तरु मूलसे।
सर सरित कमल कलाप कुबलय कुमुद बन बिकसे गँसे॥
सुखलहत यौं फल चखत मधु पीयत मधुप सो नीति सों।
मनु मगन ब्रह्मानंदरस जोगीस मुनि गन प्रीति सों॥

कूजि रहे खग कुल मधुप गुंजि रहे चहुँ ओर।
तेहि वन शिशु गोगन सकल प्रविशे नंदकिशोर॥


 

रामसहायदास

रामसहायदास के पिता का नाम भवानीदास था। इनका जन्म और मरण किस संवत् में हुआ, इसका अभी तक कुछ पता नहीं चला है। भारतजीवन प्रेस, काशी में इनका एक ग्रन्थ "शृंगार सतसई" नाम से छपा है। वह प्रकाशक को सं॰ १८९२ का हस्तलिखित मिला था। इनका कविता काल संवत् १८७७ माना जाता है। इन्होंने अपने विषय में अपने पिता के नाम के सिवाय और कुछ नहीं लिखा। "शृंगार सतसई" के सिवाय वृत्त तरंगिनी, ककहरा, राम सप्तसतिका, और वाणी भूषण नामक ग्रन्थ भी राम सहायदास के रचे हुये सुने जाते हैं।