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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३८६

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जयसिंह
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चरितामृत, त्रय वेदान्त प्रकाश, निर्णय सिद्धान्त, गंगा लहरी, हरि चरित्र चंद्रिका। इनकी रचना सरस और अलंकार पूर्ण होती थी। इनके ग्रंथों में हरि चरित्र चंद्रिका इस समय हमारे सामने है। हम उसी में से कुछ छंद उद्धृत करके पाठकों के सामने रखते हैं:—

वर्षा गई सरद ऋतु आई नवल वधू सम सुखद सोहाई
कमल बदन खञ्जन चख छाजै सुरँग सुमन बर बसन बिराजै
कल मराल नव नूपुर बाजत सुनि मुनिमानसमानविभाजत
फूली काँस सु दुति धरि धाई पतिव्रता कीरति जिमि पाई
बरसर लसहिँ सरोरुह फूले सुकृती भूप प्रजागन तूले
महिजलसूखो प्रगटी महि इमि नसतपखंडलसतश्रु तिपथजिमि
सरिसर जलइमिनिर्मलछाजत जिमि तजिविषयविरागीराजत

ककुभकुटजआदिक बिना बिकसे कुसुम निकाय।
जिमिखलमदमथिनृपनगर राख्यो सुजन बसाय॥

जल बिनजलद सेतछवि छाजत सबधन दै जिमि दाता राजत
निर्मल भयौ गगन घन फूटे जिमि हिय विषयबासना छूटे
कसत इंदु उड़गन मिलि ऐसो नृप नय निपुन प्रजाजुत जैसो
परसि चांदनी यौं छिति सोही सतीसासौति पाइ जिमि जोही
जन मन रञ्जन खञ्जन कैसै पूरब पुण्य समय फल जैसे
जलचरनितजलघटतन जानहिँ आयुकमतजिमिजननहिँ मानहिं
रवि संताप शरद शिश नाशत मोह नशतजिमि ज्ञान प्रकाशत
छनछबिछषि नहिं गगनप्रकासै तोषित हिय जिमितृष्णा नासै

परसि कमल कुबलय बहुत वायु ताप नसि जाइ।
सुनत बात हरि गुनि जुत जिमि जन पाप पराइ॥

कहु कहुँ बँधुक सुमन सोहाये जनु अनुरागी अन मन भाये
मदन मराल मिलो तजि मोरनि अलितजिचित्र कुसुमजनिकोलनि