रंभा झूमत हौ कहा थोरे ही दिन हेत।
तुमसे केते ह्वै गये अरु ह्वै हैं यहि खेत॥
अरु ह्वैं है यहि खेत मूल लघु साखा हीने।
ताहू पै गज रहै दीठि तुम पै प्रति दीने।
बरनै दीनदयाल हमें लखि होत अचम्भा।
एक जन्म के लागि कहा झुकि झूमत रंभा॥५॥
नाहीं भूलि गुलाब तू गुनि मधुकर गुंजार।
यह बहार दिन चार की बहुरि कटीली डार॥
बहुरि कटीली डार होहिगी ग्रीषम आये।
लुवै चलेंगी संग अंग सब जैहैं ताये॥
बरनै दीनदयाल फूल जौलों तो पाहीं।
रहे घेरि चहुँ फेरि फेरि अलि ऐहैं नाहीं॥६॥
टूटे नख रद केहरी वह बल गयो थकाय।
हाय जरा अब आइ कै यह दुःख दियो बढ़ाय॥
यह दुःख दियो बढ़ाय चहूँ दिलि जंबुक गाजैं।
ससक लोमरी आदि स्वतंत्र करैं सब राजैं॥
बरनै दीनदयाल हरिन बिहरैं सुख लुटे।
पंगु भयो मृगराज आज नख रद के टूटे॥७॥
पैहौ कीरति जगत में पीछे धरो न पाँव।
छत्री कुल के तिलक हे महा समर या ठाँव॥
महा समर या ठाँव चलै सर कुन्त कृपानैं।
रहे वीर गण गाजि पीर उर मैं नहिं आनैं॥
बरने दीनदयाल हरखि जौ तेग चलैहो।
ह्वै हौ जीते जसी मरे सुरलोकहि पैहो॥८॥
भारी भार भरयो बनिक तरिबो सिंधु अपार।
तरी जरजरी फँसि परी खेवनहार गँवार॥
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कविता-कौमुदी