राय ईश्वरी प्रताप नारायण राय
राय ईश्वरी प्रताप नारायण रायजी का जन्म सं॰ १८५९ में गोरखपुर जिले के पड़रौना राजवंश में हुआ। हिन्दी, संस्कृत और फ़ारसी में इनकी अच्छी गति थी। ये निम्बार्क सम्प्रदाय के शिष्य थे। राधाकृष्ण के बड़े प्रेमी उपासक थे। पड़रौना में इनके बनवाये हुये बहुत सुन्दर मंदिर, बाग और तालाब हैं। ये बड़े उदार, दानी, भगवद्भक्त और सुविचारवान थे। २२ वर्ष की अवस्था से ही कविता-रचना का इनको चसका लग गया था। राजा होकर, राज काज के झंझटों में फँसे रह कर भी इन्होंने बड़े मनोयोग से सुन्दर कविता की है, यह इनकी प्रकृष्ट प्रतिभा का प्रमाण है। इनका सं॰ १९२५ में देहान्त हुआ।
इन्होंने संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में कविता की है। कहीं कहीं पंजाबी की भी झलक आ गई है। इनके रखे हुये कई ग्रंथ कहे जाते हैं। अभी केवल एक ग्रंथ "रहस्य-काव्य-शृंगार" वर्तमान पड़रौना नरेश राजा ब्रजनारायण रायजी ने प्रकाशित किया है। आशा है, शेष ग्रंथ भी शीघ्र ही प्रकाशित हो जायँगे।
इनकी कविता सरस और मनोहर है। ये गान विद्या में भी बड़े प्रवीण थे। इनकी कविता के कुछ नमूने यहाँ दिये जाते हैं:—
मोह को जल पसार चहूँ दिसि संतत खेलत काल अहेरो।
भाग तू मोह मया तजि सूरख काहू को तून कोऊ कहुँ तेरो॥
नश्वर या तन को समबंध प्रताप छुटै छिन साम सबेरो।
छोड़ि सबै भ्रम जाल निरंतर श्रीवन में बस हे मन मेरो॥१॥