लाती छाती ऊँची करि खोलति छिपाती चली जाती देती
सैन को। लेजुरी गिराती फेरि फेरि फिरि आती लेन पथ मैं
फिराती त्यों बढ़ाती जाती चैन को॥
सालहोत्र—यह सं॰ १९१२ वि॰ में लिखा गया। इसमें घोड़ों की पहिचान, उनके गुण दोष, रोग और औषधियों का वर्णन है। उत्तम अश्व का लक्षण इस प्रकार कहा गया है:—
तालू रसना अधर अरुन बिराजत हैं उज्जलं अरुन स्याम
इक रंग अंग है। लोचन बिसाल लंबी ग्रीव मुख मंजुल है
कच घुघुरारे बड़े स्रुति सुठि तंग है॥ सुच्छम तुचा है, चौड़े
उर, पातरे चरन, पूँछ लघु, गति लोल, लागी बासु संग है।
विरले न दंत, सिर ऊँचे, बंक देखियत लच्छन ये जामें सोई
उत्तम तुरंग है॥
घोड़े के रोग की दवा
जौ घोड़े को देखिये फूल्यो उदर सिवाय।
पटकि पटकि लोटै धरनि ताको जतन बताया॥
बैठै उठै घोड़ तनि आवै।
हरैं राई लोन खिआबै॥
यहि तें जौ कुरकुरी न छूटै।
तौ दूसर औषधि लै कूटै॥
हैंसि मूल को तुचा मँगावै।
पातर करि कै ताहि पिलावै॥
राग माला—यह सं॰ १९४६ वि॰ का छपा है। इसमें राय रणधीर सिंह के रचे हुये। भजन और सीत, विविध राग रागिनियों में हैं। नमूने के तौर पर एक भजन हम यहाँ उद्धृत करते हैं:—