सं॰ १९३४ में इन्होंने "शिवसिंह सरोज" नामक एक बड़े ही उपयोगी ग्रन्थ की रचना की। इस में लगभग एक हज़ार हिन्दी के पुराने कवियों की संक्षिप्त जीवनी और उनकी कविताओं के स्वल्प संग्रह हैं। कविता-कौमुदी लिखते समय हमें इस पुस्तक से बड़ी सहायता मिली। इसके सिवाय शिवसिंह ने ब्रह्मोजर खंड और शिव पुराण का गद्यानुवाद भी किया था। ये कविता भी करते थे। नमूने के रूप में इनके दो कवित्त यहाँ उद्धृत किये जाते हैं:—
पियो जब सुधा तब पीबे को कहा है और लियो शिव-
नाम तब लेइबो कहा रह्यो। जान्यो जिन रूप तब जानै को
कहा है और त्याग्यो मन आश तब त्यागिबो कहा रह्यो।
भनै शिवसिंह तुम मन में विचारि देखो पायो ज्ञान धन तब
पाइवो कहा रह्यो। भयो शिव भक्त तब ह्वै वे को कहा है और
आयो मन हाथ तब आइबो कहा रह्यो॥
कहकही काकली कलित कल कंठन की कंजकली कालिँदी
कलोल कहलन में। सेंगर सुकवि ठढ लागती ठिठुरवारी
ठाढ सब ठटे लगि लेते टहलन में। फहरै फुहारे फबि रही
सेज फूलनि सो फेन सी फटिक चौतरा के पहलन में।
चाँदनी चमेली चम्पा चारु फूल बाग बीच बसिये बटोही
मालती के महलन में॥