वली, गद्यशतक, चित्रकूट माहात्म्य, मृगया शतक, पदावली, रघुराज विलास, विनय प्रकाश, श्रीमद्भागवत माहात्म्य, राम अष्टयाम, भागवत भाषा, रघुपति शतक, गंगा शतक, धर्म विलास, शंभु शतक, राजरंजन, हनुमत चरित्र, भ्रमरगीत, परम प्रबोध और जगन्नाथ शतक। रघुराजसिंह की कविता कहीँ कहीँ बड़ी मनोहर हुई है। ये राम भक्त थे। राम को दास भाव से भजते थे। अपनी कविता में कहीँ कहीँ तुलसीदास की छाया भी इन्होंने ली है।
यहाँ रुक्मिणी परिणय और रघुराज विलास से इनकी कुछ कविता उद्धृत की जाती हैं:—
केशव जन्म लै आज्ञा दई तब लै शिशुको बसुदेव सिधारे।
गोकुल में यशुदा के निकेत में राखि सुतै दुहिता लै पधारे॥
बाल ही में विकरार सुरारिन पूनना धेनुक आदि सँहारे।
शक के कोपते राख्यो ब्रजै गिरिधारी सुंसात दिनै गिरिधारे॥१॥
जानि दुःखी यदुवशिनको सँग दानपती मधुरा कह आये॥
कंसहि कूटिकै मातु पिताको छोड़ायकै बधन मोद बढ़ाये॥
आहुकको यदुराज दियो निज बंधुनके दुःख द्वंद मिटाये।
मागधको मद मथनकै अब द्वारका द्वारकानाथ बसाये॥२॥
दीनन पालिबो शत्रुन शालिबो घालिबो भक्तनके दुःख को है।
दीठि दयाकी प्रजापै पसारिबो धर्म सुधारिबो चित्त बसे है॥
पाप नशाइबो नीति चलाइबो कीरति वेलि बढ़ाइबो सोहै॥
वृद्धन मानिबो यज्ञन ठानिवो यो जिनके गुणको सब जाहे॥३॥
बुद्धि लखे हिय लाजै बृहस्पति रूप लखे हिय लाजत भार है॥
धीरज दासरथी सो अरीनपै कोपिबो शभुसो शीलअगार है॥
विक्रम जासु त्रिविक्रमके सम क्षोनीक्षमा सुखसिंधुको सार है।
तेज कृशानु प्रतापते भानु यशैते लजै सितभान अपार है॥४॥