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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/४२२

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रामदयाल नेवटिया
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चितचाह अबूझ कहै कितने छवि छीनी :गवंदन की टटकी।
कवि केते कहैं निज बुद्धि उदै यह लीनी मरालन की मटकी।
द्विजदेव जू ऐसे कुतर्कन में सबकी मति योहीँ फिरै भटकी।
वह मंद चले किन भोटरी भटू पग लाखन की अँखियाँ अँटकी॥८॥
सोधे समीरन को सरदार मलिन्दनको मनसा फल दायक।
किंशुक जालन को कलपद्रुम मानिनी बालनहूँ को मनायक॥
कन्त अनन्त अनन्त कलीन को दीनन के मन को सुखदायक।
साँचे मनोभव राज को साज सु आवत आज इतै ऋतुनायक॥९॥


 

रामदयाल नेवटिया

से रामद‌याल नेवटिया का जन्म कार्तिक से शुक्ल १३ सं॰ १८८२ में, मंडावा (शेखावाटी) में हुआ। आपके पिता का नाम सेठ मनसा राम था। जन्म के चालीस दिन पीछे आप फतहपुर, जो मंडावा से सात कोस पर है, लाये गये। फतहपुर ही आप के परिवार की निवास भूमि है।

बालकपन से ही विद्या की ओर आपकी अधिक रुचि थी। थोड़ी ही अवस्था में आप व्योपारिक कामों में दक्ष हो गये। संवत् १८९६ में आपके पिता का देहान्त हो गया। सं॰ १९०७ में आप अजमेर के सेठ प्रतापमलजी मेहता के व्योपार के प्रधान संचालक होकर पूना गये। पूना में व्योपारिक काम करते हुये भी आपने बड़े परिश्रम से हिन्दी, संस्कृत, मराठी, गुजराती और उर्दू में अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। साधारण अँगरेज़ी भी आप समझ लेते थे।