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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/४२८

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गिरिधरदास
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उमा स्वामी शंभू जगतपति नील्लोहित प्रभू।
छुटावें मोहू कों विपत्ति अति आवागमन सों॥


 

गिरिधरदास

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के पिता बाबू। गोपालचंद्र का उपनाम गिरिधरदास था। कविता में इसी नाम का प्रयोग करते थे। कहीं कहीं गिरिधारी और गिरिधारन का प्रयोग भी मिलता है। ये हिन्दी के अच्छे कवि थे। इन्होंने चालीस ग्रंथों की रचना की थी। उनमें जरासंधवध की विशेष प्रशंसा सुनी जाती है। यह महाकाव्य कहा जाता है। इनका जन्म सं॰ १८९० में और मरण सं॰ १९१७ में हुआ। कुल २६ वर्ष ४ महीने की आयु में ४० ग्रंथों की रचना बड़ी प्रतिभा का काम है। इनके ग्रंथ प्रायः अप्रकाशित हैं। दो एक ग्रंथों को बाबू हरिश्चन्द्र ने छपवाया था। और कई ग्रंथों का अब कहीं पता भी नहीं चलता। इनके रचित ३८ ग्रंथों के नाम ये हैं:—

१—वाल्मीकि रामायण—पद्यानुवाद, २—गर्ग संहिता, ३—भाषा एकादशी की चौबीसों कथा, ४—एकादशी की कथा, ५—छन्दार्णव, ६—मत्स्य कथामृत, ७—कच्छप कथामृत, ८—नृसिंह कथामृत, ९—बावन कथामृत, १०—परशुराम कथामृत, ११—रामकथामृत, १२—बलराम कथामृत, १३—बुद्ध कथामृत १४—कल्कि कथामृत, १५—भाषा व्याकरण, १६—नीति, १७—जरासंधवध महाकाव्य, १८—नहुष नाटक, १९—भारती भूषण, २०—अद्भुत रामायण, २१—लक्ष्मी