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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/४३६

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कौमुदी-कुञ्ज
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कौमुदी-कुञ्ज

भोजन ज्यों घृत यिन पंथ जैसे साथी बिन हाथी बिन
दल जैसे दास बिन बान है। राव रङ्ग रानी बिन कूप जैसे पानी
बिन कवि जैसे बानी बिन गर बिन तान है। रसरास रीति
बिन मित्र ज्यों प्रतीति बिन व्याह काज गीत बिन माने बिन
दान हैं। रंग जैसे केसर बिन मुख जैसे बेसर बिन प्यारी
बिन रैन ज्यों सुपारी बिन पान है॥१॥

विद्या बिन द्विज औ बगीचा बिन आमन को पानी बिन
सावन सुहावन न जानी है। राजा बिन राज काज राजनीति
सोचे बिन पुन्य की बसीठी कहो कैसे धौं बखानी है। कहैं
जयदेव बिन हित को हितू है जैसे साधु बिन संगति कलंक
की निशानी है। पानी बिन सर जैसे दान बिन कर जैसे शील
बिन नर जैसे मोती बिन पानी है॥२॥

गुन बिन कमान जैसे गुरु बिन ज्ञान जैसे मान बिन दान
जैसे जल बिन सर है। कण्ठ बिन गीत जैसे हेत बिन प्रीत
जैसे वेश्या बिन रीत जैसे फल बिन तर है॥ तार बिन यंत्र
जैसे स्याने बिन मंत्र जैसे नर बिन नारि जैसे पुत्र बिन घर
है। बानी बिन कवि जैसे मन में विचारि देखो धर्म बिन धन
जैसे पच्छी बिन पर है॥३॥

चन्द्र बिन रजनी सरोज बिन सरवर वेग बिन तुरंग
मतंग बिना मद को। बिना सुत सदन नितंबिनी सु पति
बिन विन धन धरम नृपति बिन पद को॥ बिन हरि भजन
जगत सोहै जन कौन नोन बिन भोजन विटप बिना छंद