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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/४३५

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कविता-कौमुदी
 

 

गोविन्द गिल्लाभाई

गोविन्द गिल्लाभाई का जन्म सिहोर, रियासत भावनगर मैं, श्रावण सुदी ११, सं॰ १९०५ में हुआ था। इनके पिता का नाम गिल्ला भाई था। ये गुजराती हैं। बहुत दिनों तक सरकारी नौकरी करने के पश्चात् अब दर्शन पाते हैं। गुजराती साहित्य के ये अच्छे मर्मज्ञ और सुकवि हैं। मातृभाषा गुजराती होने पर भी इन्होंने हिन्दी में अच्छे अच्छे काव्य ग्रन्थों की रचना की। इनके रचे हुये ग्रन्थों के नाम ये हैं:—नीति विनोद, शृंगार सरोजिनी, षट् ऋतु, पावसपयोनिधि, समस्या पूर्ति प्रदीप, वक्रोक्ति विनोद, श्लेष चंद्रिका, गोविन्द ज्ञान बावनी, प्रारब्ध पचासा, प्रवीन सागर, बारह लहरी और राधा मुख षोड़शी। राधा मुख षोड़शी से हम इनके कुछ छंद यहाँ उद्धृत करते हैं:—

कोऊ तो कहत छवि सर में सरोज भयो सुखमा सुभग
ताकी नीकी निरधार है। कोऊ तो कहत गोल आरसी अमोल
ताकी आभा अभिराम अति सोहे सुखकार है। कोऊ तौ
कहत चन्द अवनी में उदै भयो ऐसे मुख उपमा को कहत
अपार है। गोविन्द सुकवि पर मेरे मन जानि परयो कनक-
लता में फूल लाग्यो आबदार है॥१॥

सुधा को छिनाइ धरे अपने अधर बीच ताकी मधुराई
लखि मिश्री भई मंद है। षोड़श कला को काटि रदन ललित
कला बत्तिस बनाई बैठी मंजु मसनंद हैं॥ पोषन की शक्ति
पुनि विमल वचन परी लीनी सब सम्पति यों राधे रचि फंद
है। गोविन्द सुकवि तवे कालिमा कलंक धरि विचरत व्योम
फरियाद हित चंद है॥२॥