भाँड़न को भेंटे तिमि मेटे मरजाद दुष्ट लोभ के लपेटे
बेटे काके बने काजी हैं। न्याव मुख देखा कियो रोखन की
रेखा कियो लुज्जन में लेखा कियो कैसे मूढ़ माजी हैं॥
लाक में न माल परलोक त्यों न पाल कछु पूछते न हाल ठये
चाल जालसाजी हैं। दे तो ताहि राजी करैं केतो कहो ना
जी करैं चेतो दगाबाजी करैं एतो पंच पाजी हैं॥९॥
सुंदर सुभग तन सुखद मुदित मन आनँद के घन घन
छन हित साज हैं। दाया दानधारी बलदेव उपकारी जग
भारी भीर टारी सुचि सील के समाज हैं॥ देशकाल जानै
तिमि औषधि विधानैं सब ही को सनमानैं ठानै गुण सिर
ताज हैं। विशद विचारैं त्यों अचारैं श्री सँचारैं चारु सेई
सिद्ध भेई लघु तेई वैद्यराज हैं॥१०॥
नारी नहिँ जानत अनारी कहे गारी देत तारी दै हँसत
हैं हजारन को मारा मैं। झोली बीच गोली तीन गोली सी
लगत यह गोली कई बार गई प्राणन को पारा मैं॥ करनी
यही है घर घरनी रिझैबे जोग बसु बैतरनी मिले हिये मैं
बिचारा मैं। बैठे हैं बधिक से बिसारे बकरूप बनि ऐसे
वैद्यराज को बहावै बारिधारा मैं॥११॥
आजु जो कहैं तो आठ मास में न लागे ठीक काल्हि जो
कहैं तो मास सोरह चलावहीं। पाँच दिन कहे पाँच बरस
बिताय देहिँ पाँच वर्ष कहैं तो पचास पहुँचावहीँ॥ भाषत
प्रधान जोवै ताहू पै न त्यागै द्वार आपन लजात फेर वाहू को
लजाबहीँ। ऐसे सत्यभाषी सरदार हैं देवैया जहाँ काहे को
पवैया तहाँ जीबस लौं पावहीं॥१२॥
भाँड़न को भोज कलावंतन को कर्ण जैसे विश्वन को
बेनु से उरोज रस लीबे को। बेड़िन के विक्रम औ रामजनी