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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/४५५

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कविता-कौमुदी
 

दान कहै यों प्रवीनन सों कवि को कविता रस राखिकै पीजै।
कीरति के बिरवा कवि हैं इनको कबहूँ कुम्हिलान न दीजै।

२१

ज्ञान घटै ठग चोर को संगति मान घटै पर गेह के जाये।
पाप घटै कछु पुन्य किये अरु रोग घटै कछु औषध खाये।
प्रीति घटै कछु माँगन तें अरु नीर घटै रितु ग्रीषम आये।
नारि प्रसंग तें जोर घटै जम त्रास घटै हरि के गुन गाये।

२२

ईंटको बन्दन, नीम को चन्दन, नीचको नन्दन, बामकोघूँसा।
मातेकीगान, डफालीकीतान, औगूँगाकोगान, कपूतकोरूसा।
रंककीरीझ, जुआरीकीखीझ, अजानकीप्रीति, जुवारकोचूसा।
राजाकोदूसरो, छेरीकोतीसरो, रेंडकोमूसरो, खासरखूसा।

२३

साँप सुशील, दयायुत नाहर, काकपवित्र औ साँचो जुआरी।
पावक सीतल, पाहन कोमल, रैन अमावस की उजियारी।
कायर धीर, सती गनिका, मतबारो कहा मतवारो अनारी।
"मोतियराम" बिचारिकहै नहिँ देखी सुनी नरनाह की यारी।

२४

व्याकुल काम सतावत मोँहिँ पिया बिन नीक न लागत कोई।
प्रीतम से सपने भई भेंट भलीबिधि सों लपटाय कै सोई।
नैन उधारि पसारि कै देखौं तो चौंकि परी कतहूँ नहिँ कोई।
एरी सखी दुःख कासों कहों मुसकाय हँसी हँसि कै फिरि रोई।

२५

पौढ़ी हती पलँगा पर मैं निसि ज्ञान-रु ध्यान पिया मन लाये।
लागि गईं पलकैं पल सों पल लागत ही पल में पिय आये॥