पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/६४

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६ चले दस सहस्स' असव्वार जन, परियं पैदलं तेतीस थानं ॥ ३५ ॥ मदं गलितं मत्त से पंच दंती, मनो साम पाहार बुग पंति पंती ॥ ३६ ॥ चलै अग्गि तेजी जु तत्तं तुखारं, चावर चौरासी जु साकन्ति भारं ॥ ३७ ॥ नगं कंठ नूपं अनोप सुलाल, रंग पंच रंग ढलकर्कत ढालं ॥ ३८ ॥ सुरं पंच साब वाजित्र वार्ज, सहस्स सहन्नाय मृग मोहि राजं ॥ ३६ ॥ समुद सिर सिखर उच्छाह छाह, रचित मंडपं तोरन श्रीयगाहं ॥ ४० ॥ पदमावती बिलखि घर बाल बेली, कही कीर सों बात तब होइ केली ॥ ४१ ॥ टं जाहु तुम्ह कीर दिल्ली सुदेर्स, बरं चाहुआन जु आनौ नरेसं ॥ ४२ ॥ दूहा आनों तुम्ह चहुआन बर अरु कहि इहें साँस सरीरहि जो रहे प्रिय प्रथिराज नरेस कवित प्रिय प्रथिराज नरेस जोग लगु नव रंग रचि सरब दिन सें अरु ग्यारह तीस जोवित्री कुल सुद्ध बरनि संदेस । ॥ ४३ ॥ दिनौ । लिखि करगर द्वादस ससि लिनौ ॥ साब संवत परमानह । वर रष्षहु प्रानह ॥