पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/७२

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विद्यापति ठाकुर १७ पता नहीं चलता । बाबू नगेन्द्रनाथ गुप्त द्वारा संकलित विद्या- पति की पदावलो में राजा शिवसिंह के सिंहासनारोहण विषयक एक कविता है । उसके ऊपर के दो पद हम यहाँ प्रस्तुत करते हैं:- ३ २

२ ३ १ "अनल रन्ध्र कर लक्खन नरवय सक समुद्र कर आगनि ससी चैत कारि छठि जेठा मिलिओ बार वहप्पय जाउ लसी" इससे केवल इतना पता चलता है कि लक्ष्मणसेन ( लक्खन ) द्वारा प्रचारित सन् २६३ ( शकाब्द १३२४, विक्रम संवत् १४५६ ) में राजा शिवसिंह गद्दी पर बैठे । विद्यापति राजा शिवसिंह के दरबार में थे । दरबार में इनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। राजा ने इनको विसपी ग्राम दान दे दिया था । उसका दानपत्र अभी तक इनके वशजों के पास है । उस पर सन् २६३ लिखा है। इससे अनुमान होता है कि राजा ने गद्दी पर बैठने की खुशी में विसपा ग्राम विद्यापति को दे दिया था । राज दरबार में अपनो विद्वत्ता के बल पर इतना सम्मान प्राप्त करने के समय किसी मनुष्य की आयु कम से कम कितनी होनी चाहिये, इसकी कल्पना करके सन् २६३ उतना समय पहले विद्यापति का जन्म काल अनुमान कर लेना चाहिये । विद्यापति को पदावली में बहुत से पद्य ऐसे हैं जिन में राजा शिवसिंह और उनकी रानी लखिमा देवी का नाम आया है । शृंगार रस का जहाँ कोई मधुर वर्णन आया हैं, वहाँ विद्यापति ने लिखा है कि इस रस को राजा शिवसिंह और लखिमा देवी ही जानती हैं। रानी लखिमा देवी के विषय में ऐसा कहने की स्वतन्त्रता जब कवि को प्राप्त थी तब इससे २