पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/७१

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२६ चन्द बरदाई दूहा चढ़े राज दुग्गह नृपति सुमत अति अनन्द राज प्रथिराज आनन्द से हिंदवान सिरताज ॥ ६७ ॥ नंद के अन्य दोहे रविये सरस काव्य रचना स्त्रौं खल जन सुनिन हसत ॥ जैसे सिंधुर देखि मग स्त्रान सुभाव भुसांत ॥ ६८ ॥ तौ पनि सुजन निमित्त गुन ज का भय जिय जानि कै पूरन सकल विलास रस अत होइ सहगामिनी जस होनो नागौ गिनहु लंपट हार लोह छन समदरसो ते निकट है free दरस वा नरन तें पर योषित परसै नहीं ते | तन मन फूल | क्यों डारिये दुकूल ॥ ६६ ॥ सरस पुत्र फलदान I नेह नारि को मान ॥ १०० ॥ क्यो जग जसवान I त्रिय जीतै बिन बान ॥ १०१ ॥ भुगति मुगति भरपूर ॥ सदा सरबदा दूरि ॥ १०२ ॥ जीते जगबीच | परतिय तक्कत रैन दिन ते हारे जग नीच ॥ १०३ ॥ विद्यापति ठाकुर हामहोपाध्याय विद्यापति ठाकुर मैथिल ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम बणपति ठाकुर, पितामह का जयदत्त ठाकुर और प्रपितामह का धीरेश्वर ठाकुर था । इनका जन्म मिथिला देश के बिसपी ग्राम में हुआ था । विद्यापति का जन्म किस संवत में हुआ, इसका ठीक ठीक