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कविवचनसुधा।


गहिरो अकास पुनि लाहो अथाह थाह अलि विकराल ब्याल काल को खेलाइयो । सेर समसेर धार सहिबो प्रवाह बान गज मृगराज द्वे हथेरिन लराइबो ॥ गिरि सो गिरन ज्वाल माल में जरन होइ काशी में कगैट देह हिमि में गलाइबो । पबिो बिष विषम कबूल कवि नागर पै कठिन कराल एक नेह को निवाहिवो ॥ ५८ ॥

सेवती नेवार सेत होरन के हार जूही जूथ औ अनार मोती विद्रुम लसन्त भो । पन्ना पोखगज पत्र चक समान फाव माणिक गुलाब नील इन्दिवर गन्त भो ॥ माधवी नमूनो गऊ-मेदकल सूनो दुनो औध बाटिका बजार पूनो बिलसन्त भो । जतन जलूम जोरि रतन रसाल रङ्ग अतन अनन्द हेतु जौहरी बसन्त भो ॥ ५९ ॥

सौरभ सुपास सोधि सोहत सिलीमुख है साहसी समीर साफ सोखी सो सवै जगे । कोकिला कलाप कम्प कौतुक कहै को कुन कम- नीय केलि कला कलित ठगै लगे । फूलन की फाव चारु चांदनी हिताब औध आनँद की आव नौल नेह उमगै लगे । पायक पपीहा जगावत प्रवीन पंचमायक प्रताप ऋतु नायक रंग लग ॥ ६० ॥

आयो ऋतुराज परो मृगन समाज भान बावरे बियोगी पात पूरब को जाफ भो । पुहुप पराग पौन पल्लव पपीहा पिक पीतम पिछानि प्रीति अवध इजाफ भो ॥ मुकुलित मानती मलिन्द मुखरित मंजु मैन मलकीयति मुलुक मानो माफ भो । साफ मो