ऐसी बान मैन की न गांसी आंसीकरै तन जैसी री कटाच्छ प्यारी
तेरी करि डारती ॥६८॥
सवैया।
नारंगी अच्छ औ श्रीफल स्वच्छ मनोज की गुञ्जन की छवि हारे ।
कुम्भवधू बर के हैं किधौं २ कल्प रतीपति पद्मिनी हारे ॥
उन्नत है गिरि सो गिरि ईश किधी मनमोहनि गोल बिहारे ।
कुन्दन कजन रीति कि दुन्दुभि के ये उरोन हैं प्याग तिहारे।।६९।।
कवित्त ।
कहि गये आवन न आये मनभावन सु सावन तुलानो अति देखि अकुलाती मैं । साल दै दै सालत सलाका जिमि सुधि आये जेती कही बातै निसि सरद सोहाती मै ॥ येते पैजु मनुहारि कीन्हों है किसोर श्राली योग को सँदेसो ऊधो ल्यायो लिखि पाती मैं । कर लेत काँप्यो कर लोचन उमडि चले जेते अङ्क देखे तेते छेद परे छाती मैं ॥ ७० ॥
कियो है करार सो बिसारि दियो दगादार नन्द के कुमार सङ्ग की सँयोगिनी बने । कौन मुख लैकै ताहिं उधव पठायो इहां कैसे कही वाने हाय कहां लौ गिनी बनै। ग्वाल कवि याते एक बात तू हमारी सुनु जोपै यह हहै तौ न फेरि योगिनी बनै कूबरी को कूबर कतरि लाइ दीजो हमै ताकी करै टोपी तब गोपी योगिनी बने ॥ ७१॥
रामलला नहछू चिराग सन्दीपनिहूं बरवै बनाय विरमाई