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पृष्ठ:कविवचनसुधा.djvu/२१

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कविवचनसुधा।


अनन्य जाके उर न बसत छबि सोई सठ जनम जनम डमा- डोल है ॥ ७८॥

चीरा पचरंग सीस ईसता सहित चारु चमक चलांक चन्द चांदनी चमन है । हीरा नवबरन बिचित्र मित्र मान मद समन सोहायो आन भांति छन छन है ।। धीरा न रहत कहूं नेकहूं निहारि नैन चैन न परत चितवत चितवन है। युगल अनन्य पट पीरा मुख बीरा कर सोहे धनु तीरा हेरो जानकीरमन है ।

सवैया।

आज सिया रघुवीर सखीह समाज सकेत बसन्त सजावत ।

रङ्ग उमङ्ग अनन्त बिधान वितान लतान मनोज लजावत ॥

गावती गीत पुनीत अलीगन बीन मृदङ्ग रबाब बजावत ।

युग्म अनन्य अजूब उछाह बिलोकतही भय मान मजाक्त ।७७

कवित्त।

चिबुक अधर मृदु मधुर कपोल गोल लोल कल कुण्डल सनेह सह हेरिये । मन्द मुसकान रसखान नेह निसि नैन अंजन समेर अव- लोकि छबि छेरिये ॥ बार बार उर उमगाय नखसिख ध्यान सरस सजाय योग ज्ञान गुन गेरिये । युगल अनन्य सावधान सीय पीय जोहि मोहि एकरस तिलहू न मुख फेरिये ।।

बाड़व ज्यों अम्भ पर इन्द्र जैसे जम्भ पर रावन के दम्भ पर रघुकुल राज है । पौन बारिबाह पर शम्भु रतिनाह पर ज्यों सहस्त्रबाहु पर राम द्विजराज है ॥ दावा द्रुमद्रुण्ड पर चीता